Friday, July 10, 2009

उज्जैन में एक हीरो की तरह विदा हुए पं.ओम व्यास


लग रहा था वह किसी की अंतिम यात्रा नहीं;श्रावण मास में उज्जैन में निकलने वाली भगवान महाकाल की शाही सवारी है.पूरे देश में उज्जैन को और अधिक ख्याति देने वाले जनकवि ओम व्यास की पार्थिव देह को दिल्ली में 8 जुलाई को दिल्ली से उनके गृहनगर लाया गया.कलेक्टर,कमिश्नर,आई.जी.एस.पी,राजनेता,कवि,कलाकार,संस्कृतिकर्मी,चित्रकार और कई ऐसे अनजान चेहरे जिन्हें कोई नहीं जानता अपने अजीज ओम को विदा देने के लिये उज्जैन की सड़कों पर उतर आए थे. संख्या क्या बताऊं..तीन हज़ार या पांच हज़ार...शायद न बता पाऊं... लोग अपने आँसू रोक नहीं पा रहे थे. राजकीय सम्मान की तरह एक वाहन पर उनका पार्थिव शरीर सजाया गया था. आगे पुलिस बैण्ड चल रहा था. ओम व्यास अपने गृहनगर की सड़कों पर आज एक हीरो की तरह पूरे ग्यारह किमी. घूमे. अनुशासन ले लिये सड़क पर बैरिकेट्स लगे थे जिससे अंतिम यात्रा और सामान्य यातायात दोनो निर्बाध चलते रहें.पुष्प वर्षा हो रही थी. और अब सबसे आश्चर्यजनक बात ! जगह जगह स्टेज बनाकर, लाउडस्पीकर लगाकर पूरे उज्जैन में ओम व्यास की पूर्व-रेकॉर्डेड रचनाओं का प्रसारण हो रहा था. बड़ी बात यह है कि ये काम न प्रशासन ने किया , न किसी नामचीन संस्था ने, आम दुकानदारों ने बाज़ार बंद रखकर ओम व्यास के लिये यह काव्यात्मक श्रध्दांजली देने का ग़ज़ब का कारनामा किया. एक कवि की ताकत आम आदमी होता है, जिसे वह न नाम से जानता है , न सूरत से ...लेकिन बस अपने प्यारे कवि से मोहब्बत करता है.आज उज्जैन की सड़कों पर बना ये मंज़र हमारे नगर को पहचान देने वाले पं.सूर्यनारायण व्यास,शिवमंगल सिंह सुमन और सिध्देश्वर सेन की कड़ी में एक और चचित नाम जोड़ गया....ओम व्यास "ओम"

उपरोक्त आँखोंदेखा विवरण पं.ओम व्यास के पारिवारिक मित्र नितिन गामी ने उज्जैन में मालवा के इस धारदार कवि की अंत्येष्टि मे सम्मिलित होने के बाद सुनाया.

ओम भाई को गए तीन दिन हो गए हैं लेकिन यादें हैं कि पीछा ही नहीं छोड़तीं . ऐसा लगता है कि जैसे वे अभी किसी कवि-सम्मेलन में भाग लेने उज्जैन से बाहर गए हैं और बस आज ही लौट आएंगे.पिछले दिनों मेरे मित्र डॉ.जी.एस.नारंग बता रहे थे कि वे अपने रिश्तेदार के यहाँ उज्जैन कुछ दिनों के लिये गए हुए थे. उन्हें नियमित रूप से सुबह की सैर का क़ायदा बना रखा था. निममित क्रमानुसार जब डॉ.नारंग एक दिन कोठी रोड पर घूमने निकले तो देखा एक कुर्ता पहना हुआ आदमी, चोटीधारी आगे आगे चल रहा है और पीछे पीछे दस-बीस लोग ठहाका लगाते हुए चल रहे हैं. डॉ.नारंग ने अपने स्वजन से पूछा कि ये कौन जा रहा है और उसके पीछे चलते हुए लोग क्यों ठहाका लगा रहे हैं तो पता लगा ये ख्यात कवि ओम व्यास है, सुबह सैर पर निकले हैं और पीछे चल रहे लोग उनकी बातों पर ठहाके लगा रहे हैं.मित्र ने पूछा क्या कविता सुना रहे होंगे,तो बताया गया कि नहीं वे तो बात करते करते ऐसी बात कर जाते हैं कि हँसी रोकना मुश्किल हो जाता है.मुझे लगता है किसी व्यक्ति के अवाम का दुलारा होने का और प्रमाण क्या हो सकता है.

विगत दिनों ओम व्यास लगातार इन्दौर आ रहे थे और काव्य पाठ कर मजमा लूट रहे थे.मेरे एक परिचित ने कहा व्यास जी से कहिये कि बार बार एक शहर में न आया करें.मैंने ये बात एक एस.एम.एस के ज़रिये ओम भाई तक प्रेषित की. ओम भाई ने तत्काल जवाब दिया जजमान बुलाए तो जाना ही पड़ता है भिया,और किसी को तकलीफ़ है तो वो न बुलाए अपन को.ओम व्यास के पास मंचीय ज़रूरत के मुताबिक चुटकुलेबाज़ी का चूरण तो था ही लेकिन विशुध्द कविता भी थी वरना वह हिन्दी मंच पर इस क़दर सफल और धुँआधार पारी नहीं खेल सकता था.कबाड़ख़ाना पर भाई रवीन्द्र व्यास ने एक टिप्पणी में सही कहा है कि इसमें कोई शक नहीं कि ओम व्यास में एक हास्य कवि से कुछ अधिक की संभावनाएँ मौजूद थी.कबाड़ख़ाना के कमेंट बॉक्स में ही युवा कवि डॉ.कुमार विश्वास की मार्मिक टिप्पणी ज़रूर पढ़ियेगा.

कस्बाई आदमी जब बड़े फ़लक पर सफलता अर्जित करने लगता है तो उसके मन में आर्थिक महत्वाकांक्षाएं उड़ान भरने लगतीं हैं, और इसमें कुछ बुरा भी नहीं.ओम भाई भी अपने परिवार को बेहतर परवरिश देने के लिये लगातार यात्राएं करते रहे और अथक परिश्रम से अपने परिवार को सँवारते रहे. मैंने एक बार कहा ओम भाई आपका ड्रेस सेंस बड़ा ग़ज़ब का है, हमेशा कलफ़ लगा कुर्ता और पेंट पहनते हैं ! उन्होंने तुरंत जवाब दिया भैया आजकल पैकिंग का ज़माना है , कविता को जमाना है तो फ़ैब इण्डिया जाना है और वहाँ के कपड़े लाना है. अपने आप को नहीं बदलो तो समय अपने को आउट कर देता है. हमारे कवि भाई लोग एक सफ़ारी में कवि सम्मेलनों का पन्द्रह दिन का टूर निपटा लेते थे अब ऐसा नहीं चलता.
आयोजक आजकल आपके कपड़ों और सूटकेस के ब्रांड से आपकी कविता का लेवल और पारिश्रमिक तय करने लगा है.
फ़िर कहने लगे मैं पन्द्रह दिन के लिये अमेरिका गया तो पन्द्रह चड्डी-बनियान साथ ले गया.मैने आश्चर्य प्रकट किया तो बोले ऐसा है हिन्दी कविता पढ़ने के लिये डॉलर में पेमेंट लो और रात को प्रोग्राम से आने के बाद कपड़े धोने बैठो तो ये किसने सिखाया अपने को.

ओम व्यास मित्रों से जब भी मिलते तो कोई उपहार या स्मृति चिह्न ज़रूर भेंट कर देते,पिछले दिनों वे मेरे लिये रतलाम का मशहूर इत्र ले आए थे. इत्र तो कभी न कभी ख़त्म हो जाएगा लेकिन उसमें ओम व्यास नाम के मुस्कुराहट देने वाले फूल की ख़ुशबू कभी कम न होगी.

Sunday, July 5, 2009

इन्दौर का सिख मोहल्ला अब कहलाएगा भारतरत्न लता मंगेशकर मार्ग


दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ लता मंगेशकर का जन्म (28 सितम्बर 1929) इन्दौर में हुआ है. आने वाले सितम्बर में लताजी पूरे 80 बरस की हो जाने वालीं हैं.इन्दौर की नगर पालिक निगम ने सैध्दांतिक रूप उस एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है जिसके तहत इन्दौर के सिख मोहल्ले की दो सड़कों में से एक का नाम भारतरत्न लता मंगेशकर मार्ग कर दिया जाएगा. उल्लेखनीय है कि इसी सिख मोहल्ले में अपनी मौसी के घर में लताजी का जन्म हुआ था.

इन्दौर नगर पालिक निगम की महापौर डॉ.उमाशशि शर्मा और सभापति शंकर लालवानी ने व्यक्तिगत रूचि लेकर इस प्रस्ताव को पारित करवाने में अथक प्रयास किये. उल्लेखनीय है कि सन 1984 से लता मंगेशकर अलंकरण पुरस्कार समारोह भी इन्दौर में आयोजित किया जाता रहा है जिसमें अब तक चौबीस गायक और संगीतकार सम्मानित किये जा चुके हैं. मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा सुगम संगीत के क्षेत्र में दिया यह देश का सबसे बड़ा पुरस्कार है. हालाँकि स्वयं लताजी इस पुरस्कार में कभी नहीं आईं हैं .हाँ ये बता दूँ कि लताजी के नाम से स्थापित इस अहम पुरस्कार से आशा भोंसले और पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर भी नवाज़े जा चुके हैं.सन 1983 में इन्दौर में ही लता-रजनी के नाम से लताजी का भव्य लाइव शो भी आयोजित किया जा चुका है और उसी समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने लताजी के नाम से इस प्रतिष्ठा अलंकरण की स्थापना की घोषणा की थी.

उस दौर में जब नेताओं के नाम से ही सड़कें और मूर्तियों के नामकरण का चलन है इन्दौर ने एक सड़क को सर्वकालिक महान स्वर-कोकिला के नाम समर्पित करने का फ़ैसला लेकर प्रशंसनीय पहल की है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन्दौर नगर पालिक निगम में इस शुभ काम के लिये सही समय (लताजी 80 वाँ जन्मवर्ष) का चयन किया है साथ ही यह काम लताजी के जीवन काल मे होने जा रहा है जो समस्त लता मुरीदों के लिये अत्यंत हर्ष का विषय है.

मैंने बीती शाम मुंबई फ़ोन कर के लता दीदी को इस पहल की सूचना दी जिस पर उन्होंने अपनी मीठी आवाज़ में धन्यवाद कहा. मैंने उनके स्वर में इस बात की असीम प्रसन्नता महसूस की कि उनकी जन्मभूमि ने यह भावनात्मक तोहफ़ा उन्हें दिया.यूँ देखा जाए तो लता मंगेशकर जैसी अज़ीम शख़्सियत के लिये कोई भी सम्मान बहुत छोटा है लेकिन जब आपकी जन्मस्थली आपको याद करे तो बात ही कुछ और होती है.